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Showing posts from August, 2020

गंगाघाट

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  गंगाघाट पर मिलूंगी तुझे लेहरो में लहराते हुए तेरे लिए एक राग गाते हुए एक टक तुझे देखकर दिल से मुस्कुराते हुए गंगा घाट पर मिलूंगी तुझे सुना है वहां सारे पाप मिट जाते हैं सब एक दूसरे को मिल जाते हैं इन आँखों से तुझे देख न सकी पर दिल में सिर्फ तू ही था गंगा घाट पर मिलूंगी तुझे बस तुझे देख कर मुस्कुराते हुए कहते है जो जहाँ में नहीं मिलते कहीं मिलते तो ज़रूर हैं बस मिलेगा जब तू मुझे रो लुंगी गले तुझे लगाते हुए मेने तुझे सम्भाल कर रखा है संदूक में बंद किये कुछ अपने ख्वाबो में सूखे हुए गुलाबो में डायरी में पड़े हुए बीते हुए खतों को अक्सर निकाल कर देखती हु सोचती हु तू शायद बदल गया होगा कभी सोचती नहीं तू वैसा ही है इस शायद ने मुझे जीते जी मार दिया दरवाज़े पे मौत खडी शायद मेरे जाने की घडी है तो सोचा कहदू तुझे इस जहाँ में तुजसे मिल न सकि उस जहा में मुझे कोई रोक न सकेगा ये मेरा प्यार है कोई बचपना नहीं ये ज़िंदा है आज ये कल भी रहेगा में आज की हस्ती शायद कल न रहु मुझे भूल जाना पर मेरी आवाज़ याद रखना कहते हैं चेहरे मिटटी होजाते हैं तू रहना आबाद और अपने साथ मेरे लफ्ज़ आबाद रखना मेरी मोहब्बत पूरी है इस...

तुम

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 क्या तुम भी चाँद को देखते हो  एकटक  तुम्हे एकटक कभी नहीं देखा मेने  हमेशा ऑंखें निचे कर लिया करती थी  आज एक शाम चाँद को एकटक निहार के देखा  और तुम याद आगये  में नही जानती की तुम कहा हो , क्या कर रहे हो  पर क्या तुम भी चाँद को ऐसे देखकर  पूछते हो , मेरी तरह  चाँद तो वही है  उसे पता होगा की तुम जहाँ हो अचे हो  अँधेरे में कुर्सी में छहहत पर  बैठ कर  चाँद को देखने में बहुत सुकून मिलता है  चाहे चाँद पूर्णमासी का हो या नहीं अधूरापन भी खूबसूरत है चाँद का  चाँद की ख़ूबसूरती उसके  अधूरे या पूरे होने से नहीं  चाँद की ख़ूबसूरती बस उसके होने से है  जैसे की तुम  तुम हो  एहि काफी है  किसके लिए हो , कहा हो , क्यों हो  इनसे अब फरक नहीं पढ़ता है  बस हो तो काफी है  जहाँ भी हो  बस हो , काफी है  इस चाँद को देखकर वो बातें  कह देती हूँ  जो तुम्हे  केहनी थी  कोई तो सुनले उनको  इसे पहले की ये कहानी ख़त्म हो जाये  किसी रोज़ तुम भी चाँद से सुन  लेना...

You are in me :)

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  They say that physical pain is nothing. I can’t disagree. It is nothing.   My body has held on to the remnants of your love lodged in its deepest bones in the form of our photograph that I have kept in my wallet, And in the form of a note that you sent me with flowers, The remain with me even today, that yearn to soak in your slow spring than groan alone in grey-whites, Gravity or love, you either make your world stop and embrace me or I'm never giving up Don't you remember how your cheeks used to wear the pink of guava upon seeing me? And your giggled smile, how do you forget things like that, trying to remember what it was like to be with you, for this isn't just limerence, this is an intermediate of divinity and mortality. One day I will reach for you, Not sure if in this life or next, But I am coming back for you. As the night proudly gathers it's brush to paint its skin in a blue-black gradient, my arms become my pillow mot...