गंगाघाट
गंगाघाट पर मिलूंगी तुझे
लेहरो में लहराते हुए
तेरे लिए एक राग गाते हुए
एक टक तुझे देखकर
दिल से मुस्कुराते हुए
गंगा घाट पर मिलूंगी तुझे
सुना है वहां सारे पाप मिट जाते हैं
सब एक दूसरे को मिल जाते हैं
इन आँखों से तुझे देख न सकी
पर दिल में सिर्फ तू ही था
गंगा घाट पर मिलूंगी तुझे
बस तुझे देख कर मुस्कुराते हुए
कहते है जो जहाँ में नहीं मिलते
कहीं मिलते तो ज़रूर हैं
बस मिलेगा जब तू मुझे
रो लुंगी गले तुझे लगाते हुए
मेने तुझे सम्भाल कर रखा है
संदूक में बंद किये कुछ अपने ख्वाबो में
सूखे हुए गुलाबो में
डायरी में पड़े हुए
बीते हुए खतों को
अक्सर निकाल कर देखती हु
सोचती हु तू शायद बदल गया होगा
कभी सोचती नहीं तू वैसा ही है
इस शायद ने मुझे जीते जी मार दिया
दरवाज़े पे मौत खडी
शायद मेरे जाने की घडी है
तो सोचा कहदू तुझे
इस जहाँ में तुजसे मिल न सकि
उस जहा में मुझे कोई रोक न सकेगा
ये मेरा प्यार है कोई बचपना नहीं
ये ज़िंदा है आज ये कल भी रहेगा
में आज की हस्ती शायद कल न रहु
मुझे भूल जाना पर मेरी आवाज़ याद रखना
कहते हैं चेहरे मिटटी होजाते हैं
तू रहना आबाद और अपने साथ मेरे लफ्ज़ आबाद रखना
मेरी मोहब्बत पूरी है
इसे हमेशा मुकम्मल कहना
कुछ यादों में मुझे हमेशा याद रखना
इस कविता में अपना नाम ढूंढ ले
में चलती हु इसे पहले मुझे मौत का पैगाम ढूंढ ले
विरह रस का राग आलाप कर
शुन्यमें मिल जाउंगी
वन वन भटकु न जाने क्या ढूंढ ने के लिए
न मिला कुछ तो वन में ही खो जाउंगी
मेरे आखरी छःहंद के पहले हर ख्याल में तू था
मुझे कोई मलाल नहीं की मेरे हर सवाल में तू था


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