हमसफ़र
मेरे हमजोलिया मेरे बिछड़े हमसफ़र
कुछ ऐसे नाम लेके ये जहाँ मुझे छेड़ते सब यहाँ
किसे करूँ शिकायत ,किसे करू ये बयान
अब में जाऊ कहा
कभी मुस्कुराते हैं कभी सिमट जातें हैं
इस जहाँ की बातों पर और अपने जज़्बातो पर
तुम बस जल्दी आ जाओ
सावन गया , पतझड़ भी जाने को है
कुछ यहाँ कुछ वहां
कितने खुशनसीब हैं वो कान जो तेरी खैर रोज सुनते होंगे
कितने खुशनसीब है वो ऑंखें जो तेरा दीदार करती होगी
तेरे नाम लेकर लोग मेरा दिल जलाते हैं मेरा
आखिर कब होगा वो सवेरा जब तू
हाथ थमेगा मेरा
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