तुम


 क्या तुम भी चाँद को देखते हो 

एकटक 

तुम्हे एकटक कभी नहीं देखा मेने 

हमेशा ऑंखें निचे कर लिया करती थी 


आज एक शाम चाँद को एकटक निहार के देखा 

और तुम याद आगये 

में नही जानती की तुम कहा हो , क्या कर रहे हो 

पर क्या तुम भी चाँद को ऐसे देखकर 

पूछते हो , मेरी तरह 

चाँद तो वही है 

उसे पता होगा की तुम जहाँ हो अचे हो 


अँधेरे में कुर्सी में छहहत पर  बैठ कर 

चाँद को देखने में बहुत सुकून मिलता है 

चाहे चाँद पूर्णमासी का हो या नहीं

अधूरापन भी खूबसूरत है चाँद का 


चाँद की ख़ूबसूरती उसके  अधूरे या पूरे होने से नहीं 

चाँद की ख़ूबसूरती बस उसके होने से है 

जैसे की तुम 

तुम हो  एहि काफी है 

किसके लिए हो , कहा हो , क्यों हो 

इनसे अब फरक नहीं पढ़ता है 

बस हो तो काफी है 

जहाँ भी हो 

बस हो , काफी है 


इस चाँद को देखकर वो बातें  कह देती हूँ 

जो तुम्हे  केहनी थी 

कोई तो सुनले उनको 

इसे पहले की ये कहानी ख़त्म हो जाये 


किसी रोज़ तुम भी चाँद से सुन  लेना 

मेने क्या कहा था तुम्हारे लिए 

तुम किसी बात का गम मत करना 

मेरे लिए कभी ऑंखें नम करना 



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