शाम

आज भी अंधेरों से कहा 

की लाख कोशिशें  की थी हमने 

हम कभी पहले लिख क्यों नहीं पाए

कभी कलम ने साथ नहीं दिया

और जब हमने लिखना सीखा तब तुम न रहे 


बातें हमे अब सारी याद तो नहीं 

यादें भी धुंदला सी गयी हैं

पर इतना याद ज़रूर है की आज भी हम सब 

जीतकर हार ही जाते हैं


अब हम तुमने इतना जानते नहीं 

पर शायद आज भी तुम 

बातें आँखों से ही कहा करते हो 


हर शाम आज भी हम ऑंखें बंद करके 

चाँद को निहारककर ये कहते हैं 

शायद आज सब यादें ये आसमान और सितारे 

रात के अँधेरे मे समेटकर ले जाएंगे

और हर सुबह उठकर हम 

दुबारा शाम का इंतज़ार करते हैं


और तुम्हारी याद में एक और दिन बीत जाता है 

और एक पन्ना इसे तरह हम लिख देते है रात के अंधेरों मे


अब दिल मे कोई हमदर्द नहीं है 

न ही कोई बेदर्द है 

हर कोने मे देख लिया है झांक कर

उस और भी दर्द है और इस और भी दर्द है



पहले हमारे पास शब्द ही नही थे आज लफ्ज़ भी है अल्फ़ाज़ भी 

और देखो अब तुम न रहे


हमारे पास बस एक ही खत था

तुम्हारे पास अनेको खत थे 

नए सलाम हर पहर 

नए मक़ाम हार पहर 

शायद पहला सलाम तुमने मिटा दिया

या वो पहली कलाम तुम ढून्ढ न सके




याद है किस तरह तुम्हारी बातों और आँखों से हार

जाया करती थी 

आज भी हार जाती हूँ तुम्हारी यादों से मैं



गुज़र जा वो जमाना कहु तो किस से कहु

ख्याल दिल को मेरे सुभो शाम किसका था



हम को अब तक वो सारा ज़माना याद है 

कहा हुआ तेरा हर अफसाना याद है 

क्या कहु आज भी तेरा मुस्कुराना याद है 

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